राष्ट्रीय

आज से शुरु हुए शारदीय नवरात्र, पहले दिन की जा रही मां शैलपुत्री की अराधना 

पालकी में सवार होकर आ रही माता 

देहरादून। शारदीय नवरात्र आज शुरू हो रहे हैं। घरों के साथ ही मंदिरों में घट स्थापना कर पूजा अर्चना की जाएगी। इसके लिए सुबह 6:15 बजे से लेकर दोपहर 12:33 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा। नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होगी। इस बार नवरात्र में तिथियां बढ़ रही है, जोकि शुभ संकेत मानी जा रही है। वहीं इस बार मां पालकी में सवार होकर आएगी।

आचार्य डॉ. सुशांत राज ने बताया कि नवरात्र के दिन घटस्थापना का मुहूर्त सुबह 6:15 बजे से 7:22 बजे तक रहेगा। वहीं, अभिजीत मुहूर्त 11:46 बजे से 12:33 बजे तक रहेगा। शारदीय नवरात्र में इस बार पांच और छह अक्तूबर को तृतीया तिथि रहेगी। इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाएगी। इसके चलते इस बार नवरात्र की तिथि बढ़ रही है।

बताया कि 11 अक्तूबर को अष्टमी और नवमी का पूजन एक ही दिन होगा। अष्टमी तिथि दस अक्तूबर को दोपहर 12:31 से शुरू होकर 11 अक्तूबर को दोपहर 12:06 पर समाप्त होगी। इसके बाद नवमी तिथि शुरू होगी।

घट स्थापना पर इस बार कन्या राशि में चतुर्ग्रही योग बन रहा है। जिसमें बुध, सूर्य, केतु और चंद्रमा विराजमान रहेंगे। उत्तराखंड विद्वत सभा के अध्यक्ष आचार्य विजेंद्र प्रसाद ममगाईं ने बताया कि नवरात्र में नौ अक्तूबर को कालरात्रि पूजा की जाएगी। वहीं 12 अक्तूबर को विजयदशमी का पर्व मनाया जाएगा।

कलश स्थापना इन बातों का रखें विशेष ध्यान

 

  • कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें।
  • पूजा के समय ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः कहते हुए अपने ऊपर गंगाजल छिड़कें।
  • अपने पूजा स्थल से दक्षिण और पूर्व के कोने में घी का दीपक जलाते हुए, दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन: । दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोस्तुते मंत्र पढ़ते हुए दीप जलाएं।
  • मां दुर्गा की मूर्ति के बायीं तरफ श्री गणेश की मूर्ति रखें।
  • पूजा स्थल के उत्तर-पूर्व भाग में पृथ्वी पर सात प्रकार के अनाज, नदी की रेत और जौ ॐ भूम्यै नमः कहते हुए डालें।
  • कलश में जल-गंगाजल, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, रोली, मौली, चंदन, अक्षत, हल्दी, सिक्का, पुष्प आदि डालें।
  • कलश में थोड़ा जल-गंगाजल डालते हुए ॐ वरुणाय नमः मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें।

कलश स्थापना इन बातों का रखें विशेष ध्यान

  • आम के पांच (पल्लव) डालें। यदि आम का पल्लव न हो, तो पीपल, बरगद, गूलर अथवा पाकर का पल्लव भी कलश के ऊपर रखने का विधान है। जौ या कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें।
  • कलश को लाल कपड़े से लिपटा हुआ कच्चा नारियल रखकर कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए बालू या मिट्टी पर कलश स्थापित करें।
  • मिट्टी में जौ का रोपण करें और कलश स्थापना के बाद मां भगवती की अखंड ज्योति जलाएं। यदि हो सके तो यह ज्योति पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए।
  • क्रमशः श्रीगणेशजी की पूजा, फिर वरुण देव, विष्णुजी की पूजा करें। शिव, सूर्य, चंद्रादि नवग्रह की पूजा भी करें। इसके बाद देवी की प्रतिमा सामने चौकी पर रखकर पूजा करें।
  • पुष्प लेकर मन में ही संकल्प लें कि मां मैं आज नवरात्र की प्रतिपदा से आपकी आराधना अमुक कार्य के लिए कर रहा हूं, मेरी पूजा स्वीकार करके मेरी कामना पूर्ण करो।
  • पूजा के समय यदि आप को कोई भी मंत्र नहीं आता हो, तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे पढ़कर सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। मां शक्ति का यह मंत्र अमोघ है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *